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आकस्मिक हृदयाघात पर परिचर्चा आयोजित की गई

भिलाई नगर। सिविक सेंटर स्थित महात्मा गांधी कलामंदिर में रविवार को डीएम कॉर्डियोलॉजिस्ट द्वय डॉ सुलभ चंद्राकर तथा डॉ गौरव त्रिपाठी की अगुवाई में आकस्मिक हृदयाघात पर परिचर्चा आयोजित की गई। भारत विकास परिषद, जैन मिलन व जैन ट्रस्ट, सेक्टर 06 तथा न्यू प्रेस क्लब ऑफ भिलाई नगर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस परिचर्चा में आकस्मिक हृदयाघात के मामलों खास कर युवाओं में इस तरह के बढ़ते मामलों के संभावित कारणों, सावधानियों तथा बचाव के उपायों को दोनों हृदयरोग विशेषज्ञों ने प्रभावी तरीके से रखा। साथ ही हृदयघात की आपातकालीन स्थिति में मरीजों और आकस्मिक हृदयाघात के कारण मृत्यु से कैसे बचाया जाए, इस पर गहन चर्चा करने के साथ-साथ विषय से संबंधित सवालों के जवाब भी दिए गए।
डॉ सुलभ चंद्राकर ने अखबारों का हवाला देते हुए कहा कि अक्सर यह खबर पढ़ने में आता है कि फलाने व्यक्ति की नृत्य करने या फिर एक्सरसाइज करने के दौरान मृत्यु हो गई। देखा जाए तो युवाओं की मृत्यु के 80 फीसदी मामले हृदयाघात से जुड़े होते हैं। सवाल ये उठते हैं कि क्या वह स्वस्थ था, क्या उसे पहले से ही कोई परेशानी थी, क्या उसने हृदयरोग के लक्षणों के बारे में कोई संकेत दिया था या रोग जेनेटिक था। और सबसे बड़ा सवाल क्या उसे बचाया जा सकता था। ऐसे झकझोर देने वाले सवालों के बीच डॉक्टर ने यह भी बताया कि हृदय कैसे काम करता है। उन्होंने बताया कि हृदय एक चैंबर की तरह होता है, जिसमें स्वतः ही इलेक्ट्रिक और ब्लड सप्लाई होती है, जिसके कारण वह लगातार धड़कता है। हृदय के तीन घटक होते हैं, इलेक्ट्रिक सप्लाई, ब्लड सप्लाई और मांसपेशियां। तीनों में से किसी में भी समस्या आने पर हृदयाघात की संभावना बढ़ जाती है। जन्म के समय हमारी नसें सामान्य होती हैं, इनमें कोई ब्लाॉकेज नहीं होता, लेकिन वक्त के साथ-साथ कैल्शियम और कोलेस्ट्रॉल का जमना शुरू हो जाता है। डॉक्टर गौरव त्रिपाठी ने चेताया कि हृदयाघात से आचानक मृत्यु भी हो सकती है‌। शुरू में जोखिम कम होती है, लेकिन बाद में यह बढ़ जाती है।सभी हृदयरोगियों के लक्षण एक जैसे नहीं होते। किसी मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती है तो किसी मरीज के सीने में दर्द होता है। इस रोग के 50 फीसदी व्यक्ति अस्पताल तक भी नहीं पहुंच पाते और घर में ही दम तोड़ देते हैं। किसी व्यक्ति को अटैक आता है तो सीपीआर के माध्यम से उसकी तात्कालिक सहायता भी की जा सकती है। अपने स्तर पर 325 मिलीग्राम वाली गोली चबाकर भी प्राथमिक उपचार किया जा सकता है।लेकिन अस्पताल अवश्य ले जाएं। दोनों विशेषज्ञों ने सीपीआर देने का तरीका भी बताया।
परिचर्चा शुरू होने से पहले अरुण परती ने दोनों विशेषज्ञों का स्वागत किया और कहा कि आज से छह-सात महीने पहले संयोजक डॉ सुधीर गांगेय के साथ इस तरह की परिचर्चा के आयोजन को लेकर लंबी बात हुई, जिस में युवाओं में हृदयाघात के लगातार बढ़ते मामलों पर गहरी चिंता व्यक्त की गई। इस रोग के कारणों का विश्लेषण किया गया कि कहीं इस रोग का सीधा संबंध कोरोना, तनाव या फिर खान-पान से तो नहीं। तब डॉ गांगेय ने कहा कि इस बारे में हृदयरोग विशेषज्ञों से अवश्य विचार-विमर्श करेंगे। यह परिचर्चा उसी का परिणाम है। इस अवसर पर बीएसपी के पूर्व एमडी वी के अरोरा, ओए अध्यक्ष एन के बंछोर, महासचिव परमिंदर सिंह, सीएमएचओ डॉ मनोज दानी, पूर्व बीएमएचओ डॉ सुदामा चंद्राकर, जैन मिलन व जैन ट्रस्ट के अध्यक्ष मुकेश जैन तथा भारतीय विकास परिषद के अध्यक्ष राजीव रंजन गर्ग खास तौर पर मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन डा. अनीता सावंत ने किया।

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